Tuesday 28 February 2023

आख़िर ज़ीवन है क्या ?

 एक लंबे समय बाद आज कुछ लिखने का मन है मुझे नहीं पता था की आज भी कुछ लोग मेरी विचारधारा को उतना ही पसंद करते है जितना पहले पसंद किया करते थे ।मेरी लेखिनी को पढ़ना कभी उनकी पहली प्राथमिकता हुआ करती थी । लेकिन समय चक्र को वासुदेव के अतिरिक्त कोन समझ पाया ? समय की मझधार में जब इंसान बहता है तो लाख चाहने के बाद भी वो उस भँवर से नहीं निकल पता आपकी कोई भी युक्ति उस भँवर जाल को नहीं तोड़ पति आपका हर एक प्रयास विफल होता जाता है आपको लगता है शायद आप अब कभी उस किनारे तक नहीं पहुँच पाओगे जहां आपको जाना था । ये किनारे क्या है आपके स्वप्न आपकी पिपासा आपकी इच्छायें जिनको आप प्राप्त करना चाहते है लेकिन समय की धार का तीव्र वेग आपको उनसे बहुत दूर ले जाता है और एक समय के लिए लगता है अब सब कुछ ख़त्म । लेकिन सत्यता कुछ और है जो मैंने अनुभव किया है बहुत बार आपको लगता है जीवन में आपने बहुत कुछ खोया है जिसको अब प्राप्त नहीं किया जा सकता ।बहुतो प्रयास और संघर्ष के बाद भी आप अपने लक्ष्य से वंचित रहे निरन्तर मिलती असफलता से निराश होकर आप अपने भाग्य को दोष देते है या फिर किसी व्यक्ति विशेष को । लेकिन सच तो ये है जीवन में जो कुछ भी आपके साथ हो रहा है वो सब समय चक्र का एक हिसा है जो पूर्णतः आपके कर्मो पर आधारित है। विस्वास कीजिए ज़िंदगी आपको कुछ भी नहीं देती ये सिर्फ़ लौटाती है आपने ज़िंदगी को जो दिया है ये वही आपको लौटाएगी। बस थोड़ी प्रतीक्षा कीजिए समय चक्र और प्रकृति को आपके कर्मो का मूल्यांकन करने दीजिए फिर आपके सामने होगा आपका परिणाम जो आपको सूद सहित लौटाया जाएगा । जीवन बहुत बड़ा है संघर्ष और प्रयास की प्रथम अवस्था को ही आप अंतिम मान लेते हो, मैंने बहुत लोगो को सुना है जो बोलते है छोटी सी ज़िंदगी है कट जाएगी ऐसे ही … 

बहुत बड़ी गलती कर रहे हो आप यदि आप भी इसी भ्रम में जी रहे हो , ज़िंदगी छोटी सी नहीं है जब ज़िंदगी रुलाने पर आएगी ना तो आप से एक दिन नहीं कटेगा रातें बोझ लगने लगेंगी फिर ये छोटी सी ज़िंदगी आपको पहाड़ जितनी बड़ी दिखाई देगी और जब आप इसको लांघ नहीं पाओगे तब आप अपनी चिर आयु को ख़ुद ही समाप्त करना चाहोगे । अतः इस भ्रम से बाहर आओ और देखो जीवन कितना विशाल कितना सुंदर है यदि समय प्रतिकूल है तो इसका अर्थ ये नहीं कि आप प्रकृति और भाग्य को दोष दो ।विपरीत प्रस्थितीया एक परीक्षा है जिसमें उत्तीर्ण होना अपके लिए अनिवार्य है । एक लंबे संघर्ष के बाद जब आप अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हो तब आपके पास एक कहानी होती है जो औरों के जीवन के लिए प्रेरणा बनती है । अतः हताशा निराशा सफलता का ही एक अंग है लेकिन आपको इन्हें पर करना पड़ेगा और जब आप इनको पार कर जाते हो तब आप जीवन की विशाल प्रकाष्ठा को समझ पाते हो । 

जीवन है क्या ? क्या पैसा और भौतिक सुख को पाना ? 

नहीं सच तो ये है आप पैसा और सांसारिक सुख कि चीजें (बड़ा घर बड़ी गाड़ी ) सिर्फ़ इसलिए प्राप्त करना चाहते है ताकि लोग आपसे प्रेम करे लोग आपको सम्मान दे ये सत्य है आप इससे किनारा नहीं कर सकते । लेकिन सत्य से परे आप जीवन को नहीं देख पाते सच तो ये है जो जीवन की असली परिभाषा वो ये है की आप प्रमार्थ को नहीं चुनते। आपकी पहली प्राथमिकता प्रमार्थ और परोपकार होना चाहिए ।दूसरो के लिये जीवन जीना जीवो से प्रेम करना यही तो असली मानव धर्म है । सेवा भाव से बड़ा धर्म और कर्म क्या हो सकता है ? आप इस चीज से आहत हो जाते हो की लोग आपको समझ क्यों नहीं पा रहे आप उनके प्रति कितना सेवा भाव रखते हो और बदले में आपको क्या मिलता है ? उनसे निंदा प्रतिकार ? सबसे बड़ी भूल यही होती है जब आप इनसे आहत होकर कर्तव्य विमुख हो जाते है । जीवन का सार यही है नेकी कर दरियाँ में डाल

एकाकी जीवन को अपनाकर आप अपने कर्तव्य पर डटे रहे लोगो कि विचारधारा को आप नहीं बदल सकते किंतु आप अपनी सँकरी विचारधारा का विस्तार कर आगे बढ़ सकते है ।आपको बुराई मिले या भलाई आप निरंतर प्रमार्थ करते हुए आगे बढ़े । 

जिस पेड़ पर फल होते है सबसे ज़्यादा पत्थर उसी को पड़ते है ।किंतु वो वृक्ष तब भी अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होता । 

इससे संजीदा उदाहरण और क्या हो सकता है ।-


वृक्ष कबहुँ न फल भखै, नदी न संचय नीर

 परमार्थ के कारने साधुन धरा शरीर


आज हमारी मानसिकता निजस्वार्थ और भौतिक धनभोग एवं इन्द्रिय-सुख तक ही सीमित हो चुकी है। 

केवल अच्छा पढ़ने, सुनने अथवा कहने से ही कोई अच्छा नहीं बन जाता। मानव जीवन केवल अपने और अपने घर-परिवार के पालन पोषण तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। अपनी क्षमता व सामर्थ्य के अनुसार ज़रुरतमंदों की मदद करना - समाजिक व नैतिक कार्यों में योगदान देना ही मानवता कहलाता है। 


ज्यों जल बाढ़े नाव में - घर में बाढ़े दाम 

         दोनों हाथ उलीचिए यही सज्जन कौ काम 


अतः सेवा भाव से बड़ा धर्म और कर्तव्य मानव के लिए और कुछ नहीं हो सकता जब आप ये सब जानलेते हो तब आप समय की मझधार से बहुत ऊपर उठ जाते हो समय चक्र आपके अनुकूल हो जाता है और अपने अंतर्मन में आप विजय का अनुभव लेकर अपनी सांसारिक यात्रा को पूर्ण कर जाते हो बस यही जीवन है ॥


आपका अपना कुँवर मोहित राणा


(धन्यवाद ठाकुर संजय सिंह भाई अन्तर्मन का बोध कराने के लिए ये लेख आपको समर्पित)

Wednesday 12 December 2018

दिल की बात

Hi
      Anshu pundir W/O Mohit Pundir
   Hm dono ki Saadi 4 Feb.2018 ko hui
mere husband ek businessmen h.jo bhut Hi ji Jaan s apne business ko aage badhane m lge h.hmari sadi bhut hi achhe trike s hui or hm dono ek dusre s bhut hi khus h.abhi sadi ko 10 din hi hui ki Mr.pundir n bapas apne business m busy hone ki taiyari ki mtlb ye ki onhe Delhi Jana h.Bs muje bht bura LGA kyuki Abhi sadi ko b jyada time n hua lkin onke samne Maine bilkul b mehsoos n hone Diya ki Inka bapas Delhi Jana muje achhe n lg rha tha.pr Jana to jroori tha bss subah hue vo ready hone lge or Meri himmat itni b n ki ji Bhar k onki aankhon m aankhein daal k onhe Dekh b lu .pr sayad vo smj  Gai ki m bht presan hu.vo Bahar s aaye to m apne room m baithi thi bs ate hi bole Kya by h Anshu bs muje gle s LGA Liya or m rone lgi to bole Anshu kuchh time or bs 2 ya 3 sal fir hmesa k liye ek sath hi  rhenge bs ek vo din tha or aj ka din h vo JB bhi jate h to Kuch kah to m aj b n pati pr Dil khta h ki kuchh din or fir lifetime sath .bs isiliye aj b m khus hu ki kuchh time or.or muje Pura bhrosa h ki vo din b bht jldi ayega onki mehnat jroor rang l

mgr Sach h mere husband mere liye Sab kuchh
h .Agr ye khu ki mere pati Mera guroor Hain to galat n Hoga .

mere pati apne business ko lkr bhut hi serious rhte h.Muje Pura bhrosa h ki ek din aisa b Hoga JB onki mehnat onke kdmo m hogi
khne to log hmesa yhi bolte aaye h ki kuchh n krta ya fir khu to nakaara h Mohit .lkin samundar ki ghrai ko vo hi parakh skega jisne kinaro p Beth lahro se Jung jeti h.
muje pta h ki mnzil onke bhut nzdeek h .
Agr confidentiality btau to2021 tk vo Hoga Jo vo chahte h .sayad hi itni mehnat apni life m Kisi n ki ho.struggle to bhut chhota sa sabd h bt vo Jo bhi kr rhe h apne future m kvl log dekhene   because khne ko kuchh Hoga ho nhi ya kaamyabi Dekh bolte band ho jaegi Jo aj bolte h Mohit kuchh krta nhi mje le rha h whatever.

ek herani Bali batt ye b h sayad hi Kisi ko yakii aaye ki Jo ek din 10 lakh ka deduction krta h kbhi os bande k pass Delhi s Mzf.tk ka convenience n hota .ye SB kuchh Dekh hos Mohit n Jose log nakaara bolte h.
ye m Kisi ko dikhane ya sunane ko n likh rhi kvl isiliye likha ki or logo ki trh m b waqt k sath apne past ko n bhul jau n jaane kitni bate h Jo isme n likhi pr jitna b likha h vo ek din Sach or imaandari s likha gaya h.

Abhi m   6 month ki pregnant hu bt hm dono hi apne baby ko lkr bhut hi jyada excited h
Socha h Agr baby Girl hui to oska Naam.Anshika or yadi baby boy hua to oska Naam .Raghu Raj Pratap singh Pundir Hoga.Hum dono ek dusre k sath bhut hi khus or respectable trike s rhte h.
Meri apne pati s koi sikayat n ..
agar Sach khu to ye  ki Meri khusnasibi h ki muje inke jaisa pati Mila.
mere husband ki har field m apni phchaan h.chahe vo game ho ya ek chhota  most poeter ya achha Bhai ya ek businessmen.ya fir student.kahi s khi tk b app SB in chijo ko ajma skte ho.

m chahte hu ki mera hone Bala baby bilkul aisa hi ho.onke liye jitna Kha jae otna hi thoda h.

Tuesday 3 April 2018

जोहर

#अंतिम_जौहर और घसेरा के राघव बहादुरसिंह पर आक्रमण (फरवरी-अप्रैल, 1753 ई०)

पुरे विश्व के इतिहास में अंतिम जौहर अठारवी सदी में भरतपुर के जाट सूरजमल ने मुगल सेनापति के साथ मिलकर कोल के घासेड़ा के राजपूत राजा बहादुर सिंह पर हमला किया था। महाराजा बहादुर सिंह ने जबर्दस्त मुकाबला करते हुए मुगल सेनापति को मार गिराया। पर दुश्मन की संख्या अधिक होने पर किले में मौजूद सभी राजपूतानियो ने जोहर कर अग्नि में जलकर प्राण त्याग दिए उसके बाद राजा और उसके परिवारजनों ने शाका किया।

बात 1753 की है दिल्ली के पास हरयाणा के कॉल परगने पर राजा बहादुर सिंह राघव का कब्ज़ा कर दिया था वही पास के  घोसड़ा किले पर राजा बहादुर सिंह जी राघव का राज था पूरी तरह से बेख़ौफ़ होकर बहादुर सिंह राज कर रहे थे और मुगलो से लगातर लोहा ले रहे थे लेकिन पास की मुग़ल सल्लनत को फूटी आँख नहीं सुहाते थे मुग़ल सेनापति वजीर सफदरजंग ने किसी भी तरह बहादुरसिंह को रस्ते से हटाने की सोची

तभी मुग़ल सेनापति का एक पत्र बहादुर सिंह को आता है जिसमे कौल दुर्ग से तोपे हटाने का फरमान होता  है लेकिन बहादुर सिंह मुग़ल सत्ता को चुनौती के लिए बने थे प्रतिउत्तर में बहादुर सिंह ने मुगलो के कई क्षेत्र अपने कब्जे में ले लिए, मुगलो के थाने लूटने पर बहादुर सिंह राघव को भारी मात्रा में गोला बारूद मिलता है  इससे मुग़ल सेनापति वजीर सफदरजंग खफा हो जाता है और  अपने सहयोगी भरतपुर के जाट राजा सूरजमल के साथ घासेड़ा पर आक्रमण की तैयारी करता है सूरजमल अपने पुत्र जवाहर सिंह के साथ सेना लेकर यमुना पार कर अलीगढ (कॉल) पर कब्ज़ा करते है इधर बहादुर सिंह कौल दुर्ग की जगह अपने पैतृक किले घासेड़ा पर मोर्चा सँभालने की तैयारी करते है
(तारीखे अहमदशाही, पृ० 47अ; सुजान चरित्र, पृ० 110-111 में इस को पढ़ सकते है)

सूरजमल ने घसेरा  के उत्तर दिशा के मोर्चे का नेतृत्व पुत्र जवाहरसिंह और वजीर सफदरजंग को सौंपा। दक्षिण दिशा में बख्शी मोहनराम, सुल्तानसिंह एवं वीरनारायण सहित उसके भाई नियुक्त किए। बालू जाट को आवश्यकतानुसार किसी भी मोर्चे पर मदद पहुंचाने के लिए तैयार रखा गया। स्वयं सूरजमल 5,000 बन्दूकचियों एवं तोपखाने के साथ पूर्वी द्वार जो की मुख्य द्वार होता है वहा से युद्ध के लिए तैयार होता है इस सेना में 30% के करीब मुग़ल सैनिक भी होते है

चारो तरह घिरने के कारण पहले दिन ही बहादुर सिंह को भरी क्षति झेलनी पड़ती है जिसमे उनके भाई जालिमसिंह तथा पुत्र अजीतसिंह  घायल हो जाते है लेकिन मुग़ल-जाट सयुक्त सेना को को भी जान माल की हानि होती है
कुछ दिनों तक ऐसे ही चलता रहता है इसी बीच जाट सूरजमल किले में मौजूद भारी गोला की चाहत में संधि प्रस्ताव भेजता है जिसमे दस लाख रुपये और सारा तोपखाना और गोला बारूद सौंप देने की शर्त की और  मोर्चा उठाना की बात होती है किन्तु हठीले बहादुर सिंह को ने तोपें और बारूद छोड़ देने की शर्त नहीं मानी।
इस बीच घायल हुए बहादुर सिंह के भाई  जालिमसिंह की मृत्यु हो जाती है सूरजमल ने भी क्रोधित होकर अपनी सेना को सभी मोर्चों पर शत्रु पर भीषण आक्रमण करने का आदेश दे दिया। 22 अप्रैल की रात्रि को भीषण युद्ध हुआ। दूसरे दिन मीर मुहम्मद पनाह,अलामगीर और नैनाराम  सहित जाटों-मुगलो की सेना दुर्ग में प्रवेश करने वाली होती है

लेकिन सूरजमल की सेना ये भूल जाती है  की किले में  महिलाये और बच्चे भी है घासेड़ा दुर्ग में क्षत्राणिया  जब ये देखती है की जीत की कोई उम्मीद नहीं तभी वो जौहर करने का निर्णय लेती है सूरजमल और मुगलो का तिल्सिम उस वक़्त टूट जाता है जब वो देखते है की किले में लकडिया न होने के कारण सैकड़ो राजपूत महिलाय जौहर की रस्म गोला और बारूद पर करती है और इतिहास में अमर हो जाती है इतिहास में एक संभवत पहला मौका होता है जब जौहर की रस्म किसी हिन्दू राजा के सामने हुयी हो इधर क्षत्रिय वीर बहादुर सिंह राघव अपने पुत्र   अजीतसिंह के साथ शका करते है और होने  सैनिकों के दल के साथ अन्तिम युद्ध के लिए शत्रु पर टूट पड़ा। पिता व पुत्र अन्तिम क्षण तक लड़ते हुए मारे गये और 23 अप्रैल 1753 ई० को घसेरा के दुर्ग में राण त्याग कर अमर हो जाते है (सुजान चरित्र पृ० 140-41 एवं 151; तारीखे अहमदशाही, पृ० ५२ पर जिक्र है)



राजा बहादुर सिंह राघव के पिता का नाम ठाकुर हठी सिंह बडगुर्जर (राघव)  था जो अपने आप में एक बड़े डकैत (बागी) थे जिन्होंने मुगलो के कई थाने लुटे थे पूरा क्षेत्र (इनके मूल गांव ढाना जो आज के गुड़गांव में है वहां से लेकर ,घासेड़ा, और कॉल (अलीगढ) तक का  इनके कब्जे में था ,इस कारण गिरफ्तार कर कठोर कारावास दिया गया लेकिन इनके गिरफ्तार होते थे मेवात में मेव मुसलमानो का अत्यंत बढ़ गया जो मुग़ल शक्ति कमजोर होने के कारन पास में बनी नयी जाट रियासत भरतपुर के लिए भी खतरा थी ,जाट राजा चूड़ामन ने ठाकुर हठी (हाथी) सिंह को छुड़ाने की सिफारिस की इसके बदले में ठाकुर हटी सिंह को कुख्यात मेव लुटेरे सांवलिया को मारना ठाकुर हठी सिंह ने  इस काम को बिना रुकावट कर डाला इसके बदले ठाकुर हठी सिंह बड़गुर्जर (राघव) को मुग़ल सीमा और जाट रियासत भरतपुर सीमा के मध्य का परगना घासेड़ा/घसेरा मिला जिसके अंतर्गत कुल ११ गांव थे जिसमे नूह,मालाब आदि थे 



इस घटना पर जरा सा भी संशय हो तो उसके लिए आप (गुड़गांव का गजेटीयर भी पड़ सकते है) साथ ही  विश्सनीय प्रतिष्टित लिंक दिए जा रहे है जहा आप इस घटना की  पुष्टि कर सकते है हरियाणा सरकार की ओफ्फिसिसल वेबसाइट तक पर इसकी पुष्टि की जा सकती है

1.) https://books.google.co.in/books?id=gKOqA9lgtbwC&pg=PA253&lpg=PA253&dq=bahadar+singh+surajmal&source=bl&ots=vxSRMsJCn_&sig=IqTzxyvtAe0J4ruosfIYzrYfJZ0&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwiUgf3ljKLWAhUMRo8KHTxuCG8Q6AEIZzAP#v=onepage&q=bahadar%20singh%20surajmal&f=false

2.) http://www.hindustantimes.com/india-news/ghasera-where-mahatma-gandhi-s-legacy-lives-on-waits-for-india/story-I8Z0XY4IrAW07aIc3pw48I.html

3.) http://revenueharyana.gov.in/html/gazeteers/gurgaon_1910/History.pdf

4.) http://www.censusindia.gov.in/2011census/dchb/DCHB_A/06/0620_PART_A_DCHB_FARIDABAD.pdf

5.) https://www.indiatravelforum.in/threads/a-visit-to-a-historical-place.3560/

6.) http://www.historyfiles.co.uk/KingListsFarEast/IndiaJats.htm
7.) http://mahendragarh.gov.in/history.asp


9.) (तारीखे अहमदशाही, पृ० 47अ; सुजान चरित्र, पृ० 110-111)
10.) (सुजान चरित्र पृ० 140-41 एवं 151; तारीखे अहमदशाही, पृ० ५२)

Friday 23 June 2017

प्यास क्या होती है ये मुझे तब पता चला


प्यास क्या होती उस रात पता चला.... , पढिये ये आपबीती कहानी

जोनल गेम्स में एकबार मुझे कॉलेज की तरफ से खुर्जा जाना पड़ा , चुकी मैं कॉलेज की तरफ से  वॉलीवाल का एक सीनियर ओर पास आउट स्टूडेंट था , मेरे जूनियरो के विशेष आग्रह पर में भी उनके साथ जोनल गेम्स में पहुच गया,
दुष्यन्त राघव नाम का मेरा एक  जूनियर था जो वही खुर्जा से बिलोंग करता था , वैसे तो हम सभी खिलाड़ियों के लिए कॉलेज होस्टल में ठहरने की विशेष सुविधा उपलब्ध थी , फिर भी दुष्यन्त के विशेष आग्रह पर मेने ओर मेरे एक दोस्त अमित शर्मा ने  उसके घर पर ही ठहरना उचित समझा ,
हमारे साथ एक स्टूडेंट ओर था जिसका नाम अभिनव चौहान था जो दुष्यन्त का मित्र ओर मेरे लिए छोटे भाई की तरह था ।
अब हम तीनों दुष्यन्त के साथ उसके घर की ओर चल पड़े ,
उस रात को दुष्यन्त के घर पर हमारी जमके खातिरदारी हुई ,

(उस रात ओर उन यादगार पलो के लिए दुष्यन्त को में आज यहां से धन्यवाद देना चाहूंगा )

खाना खा पीने के बाद हमारी सोने की व्यवस्था ऊपर वाले कमरे में कि गयी ।
दुष्यन्त हम तीनों का बिस्तर ऊपर वाले कमरे में लगा कर चला गया,
उस रात दुष्यन्त की सबसे बड़ी गलती ये रही कि वो सीढियो वाले दरवाजे को बाहर से बंद करके चला गया ,
मतलब अब हम तीनो ऊपर वाली छत पर पूरी तरह लॉक हो चुके थे ,ओर इस बात की हमे कोई खबर भी न थी ,
अगले दिन अभिनव का सांस्कृतिक प्रोग्राम था उसने नृत्य प्रतियोगिता में भाग लिया हुआ था , तब मैंने अभिनव को कहा कि चल डांस का रिहर्सल कर ले कल सुबह तेरी इवेंट भी है , तब अमित ने भी मेरी हा में हां मिलाते हुए उसे कहा कि हां चलो तुम्हारा रिहर्सल हो जाएगा और हमारा मनोरंजन भी ।
तब अभिनव ने उस रात हमे डांस करके दिखाया ओर वाकई उसका डांस काबिले तारीफ भी था क्योंकि उसने राजपकपूर के गाने "मेरा जूता है जापानी" पर जबरदस्त एक्टिंग के साथ सेम टू सेम रोल प्ले किया था ।उसने ओर भी गानों पर एक से एक डांस किया ।
बस हम रात भर युही मस्ती करते करते सो गए ,

अब रात के 2 बजे थे मेरी सोते सोते आंख खुली, मेरा गला सूख रहा था मुझे बड़े जोरो की प्यास लगी हुई थी , मेने पूरे कमरे में नजर दौड़ाई कही भी पानी रखा हुआ दिखाई नही दे रहा था , दरअसल खाना खाने के बाद में कभी भी पानी नही पीता ओर इसलिए उस दिन भी खाना खाने के बाद मेने पानी नही पिया था , इसलिए जोरदार प्यास लगनी तो निश्चित सी बात थी,
थोड़ी देर तक खाट पर लेटा हुआ मैं पानी के बारे में सोच ही रहा था कि अभिनव की भी प्यास के कारण आंख खुल गयी,
ओर उसने भी उठते ही पानी पीने की इच्छा जताई ओर बोला मोहित भाई बहुत तेज़ प्यास लगी हुई है और साथ ही साथ बोल उठा आप क्यों जगे हुए हो .?

मेने भी कहा जिस वजह से तू अब जगा है मेरी वजह भी वही है ।

अब मेने उसे कहा चल नीचे जा ओर पानी ले आ बुरी तरह से प्यास लगी है और गला भी सूख रहा है , खेर उसने तुरंत मेरी आज्ञा का पालन किया और शर्दी की उस रात में गर्म रजाई का मोह त्यागकर बिस्तर से उठा , जैसे ही वो रूम से बाहर निकल कर सीढियो (जिसे गांव में जिन्ना भी बोलते है ) पर लगे दरवाजे पे पहुचा तो पाया दरवाजा बाहर से लॉक है , वापस रूम में लौटकर उसने मुझे बताया कि भाई नीचे जाना नामुमकिन है क्योंकि सीढियो का दरवाजा बाहर से बंद है । हम दोनों की चहलकदमी की आवाज से अब अमित शर्मा भी उठ गया ओर उसने भी उठते ही एक ही चीज मांगी "पानी" 

यानी हम तीनो अब जोम्बी की तरह हो गए थे,
एक के बाद एक मे वही असर दिख रहा था , प्यास ................
जब अमित को पानी की सारी कहानी बताई तो उसने अभिनव को कहा अरे दुष्यन्त का फोन लगा .....
वो पानी लेकर आएगा ।
दिल अचानक से खुश हुआ चलो ये रस्ता तो है हमारे पास क्यों न दुष्यन्त को फोन लगाया जाए ,
प्यास जोरो पर थी , गला सूख रहा था ,पानी का नाम लेते ही प्यास अपनी चरमसीमा पर पहुँच जाती थी ,

तभी नम्बर डायल करते ही आवाज आई कि -"आप जिस नम्बर पर सम्पर्क करना चाहते है वो अभी बन्द है "

धत तेरी की गयी भैंस पानी मे आखिरी उम्मीद भी अब टूट चुकी थी हम तीनो का प्यास के कारण बुरा हाल था ,सुबह होने में अभी 4 घंटे बाकी थे , शर्दी की उस रात में प्यास की वजह से हमे पसीना आ रहा था , बुरी तरह फसे अब क्या करे ?आखिर अनजान जगह पर इतनी रात गए हल्ला गुल्ला करके किसी को जगाना भी तो उचित न था ।

में ओर अमित अपनी अपनी खाट पर बैठे थे , ओर अभिनव पानी की जुगत में इधर उधर घूम रहा था कमरे में सिर्फ वो गिलास था जिसमे हमने रात को दूध पिया था ,हम लगभग उस गिलास में एकसौ बार झांक कर देख चुके थे शायद पानी कही से इसमे आ गया हो ,
बस उसी गिलास को हाथ मे लिए अभिनव इधर से उधर घूम रहा था , शायद उसको हम दोनों का प्यास के कारण छटपटाना देखा न जा रहा था ।तभी अभिनव रूम से बाहर गया और थोड़ी देर बाद अंदर आया उसके हाथों में वही गिलास था , उसने मुझसे कहा गुरुजी ये लो पानी पियो ...में बड़ा हैरान था ....पानी ..?? अरे कहा से लाया .?

उसने कहा पहले पियो मेने कहा हम तीन है और ये एक गिलास पानी ..????

उसने कहा चिंता मत करो मेने पी लिया है अब तुम भी पियो ...।
मेने खटाक से पूरा गिलास गटक लिया।
लम्बी सांस लेते हुए मेने उससे कहा एक ओर मिलेगा उसने कहा बिल्कुल अभी लाया ।
थोड़ी देर बाद वो फिर एक गिलास पानी ओर ले आया ऐसे करके मेने तीन गिलास पानी पिया , उसके बाद अमित ने भी यही सवाल किया के पानी ला कहा से रहा है तू..?
वो बस यही कहता कि गुरुजी पहले आप पानी पियो ......।
हम दोनों पानी पी चुकने के बाद एक लंबी सांस ले रहे थे उस समय हमे जो आनंदमय अहसास हो रहा था उसे शब्दो मे बया करना मुश्किल है, ऐसा लग रहा था मानो मृत शरीर में नई चेतना आ गयी हो ,
अब  हम दोनो ने अभिनव से पूछा बता अभिनव पानी कहा से लाया तू..?
उसने कहा रहने दो गुरु जी आपकी प्यास बुझ गयी और क्या चाहिए आपको ,
हमने कहा नही ये रहस्य तो तुझे बताना पड़ेगा यहां दूर दूर तक कोई पानी का साधन नही फिर भी तू पानी ले आया...कैसे..????

तब जोर देने पर उसने कहा कि गुरुजी गुस्सा मत होना
" में छत की आखिर में बनी लेटरिंग (टॉयलेट) की टोंटी से पानी लाया हूं.............樂

------------कुँवर मोहित राणा

Diggvijay Singh Rajput
Dushyant Raghuvanshi
Amit Kumar

Wednesday 21 June 2017

"सर तुस्सी ग्रेट हो "दिवाकर शुक्ला की कलम से


My self - Diwakar Shukla s/o Ramakant shukla
Vill- pariyawa
Post- derauva
Dist- Pratapgarh
Pin - 230128

प्रिय मोहित राणा सर जी -

सर जी नमस्ते आप मुझे बहुत ही अच्छे लगते है ।मेने अपने जीवन मे बहुत से आदमियों से मिला लेकिन मुझे आप जैसा समझदार व्यक्ति नही मिला ।
आप बहुत ही समझदार ओर नेक फरिस्ते हो ।अपने अपनी जिंदगी मे बहुत कुछ खोया है ,कही खेल के लिए तो कही दोस्तो के लिए कही किसी ओर के लिए ,लेकिन सर जी खोना उतना ही चाहिए "एक सीमा तक"।सर जी आप अपनी लाइफ को sequre बनाइये ,में आप से आशा करता हु की आप एकदिन जरूर कामयाब होंगे । मेरा दिल कहता है । कि वो दिन दूर नही जब आप एक कामयाब व्यक्ति के रूप में नजर आएंगे ।
Best of luck

" जिंदगी है तो झमेले भी है
खुशी गम के मेले भी है
सफलता उन्ही के कदम चूमती है
जो मुश्किलों में चले अकेले है "

सर जी आपसे वो मिला जो आजतक किसी से भी नही मिला
वे प्रेरणा पूर्ण बाते जिन्हें सुनने के बाद शरीर मे एक नया उत्साह
कुछ ऐसा करने के बारे में जिससे कि मेरा नाम हो ,ओर शरीर मे एक नई energy सी आ जाती है
जब आप हमसे बाते करते है ।
सर जी आपके बारे में जितना कहा जाए उतना ही कम है ।

सर जी
.........तुसी ग्रेट हो /

(मेरी डायरी का एक अंश)


Tuesday 13 June 2017

एग्जाम रूम में जब मुझे बाहर निकाल दिया गया

बी.ए के पेपर में जब मुझे अपमानित करके एग्जामिनर ने क्लास से बाहर कर दिया था । लेकिन उसके बाद भी में उदास होने की बजाए बहुत खुश था । पढिये मेरी ये सच्ची घटना--

बात उन दिनों की है जब में बी.ए
प्रथम वर्ष का छात्र था , असल मे मैं बचपन से ही बहुत ही सिद्धान्त वादी इंसान रहा हु । ओर इसीलिए भारतीय संस्कृति और इससे जुड़ी हर चीज का में सम्मान करता हु
में बीए में इंग्लिश लेने वाला था ,
लेकिन फिर मेरे एक दोस्त ने मुझपर एक ऐसा तंज कस दिया कि मुझे अपने निर्णय को बदलना पड़ा, उसने कहा तू तो बड़ा हिंदी हिंदी करता था अब अंग्रेज बनेगा ?
उसकी ये बात मुझे अखर गयी ओर मेने सोचा आखिर में हिंदुस्तानी हु ओर अपनी मातृभाषा का बहुत सम्मान भी करता हु । फिर आज इंग्लिश को हिंदी की अपेक्षा क्यों ज्यादा वरीयता दे रहा हु । आखिर मुझ जैसा राष्ट्रभक्त ही हिंदी को प्राथमिकता नही देगा तो फिर कोन देगा .? बस यही सोचते सोचते मेरा हिंदी प्रेम उमड़ कर परवान चढ़ गया और मेने अंग्रेजी छोड़ संस्कृत ले ली ।
अब हमे क्या पता था हमने अपना सर गिलोटिन मशीन में डाल दिया था ,निकाले तब भी मरे ओर डाले रखे तब भी मरे,
क्योंकि संस्कृत का तो "स:" भी मुझे न आता था ।
इसीलिए में संस्कृत के लेक्चर में ज्यादार चुपचाप ही रहता था ।
कई बार प्रोफेसर कोई प्रश्न पूछती तो में जानते हुए भी वो बता न पाता था , अब पूछो क्यों क्योंकि मेरी संस्कृत की क्लास में , मै अकेला ही लड़का था , वैसे तो ओर भी दो थे लेकिन वो मुश्किल से ही कॉलेज आया करते थे ।
अब 30 लड़कियों में, मैं अकेला लड़का था....इसलिए मेरे अंदर झिझक का होना तो स्वभाविक था ही ।
इस कारण से क्लास में ज्यादातर लडकिया कभी कभी मेरी चुटकी भी ले लिया करती थी।
अब में संस्कृत पड़ता तो रोज था लेकिन किसी को महसूस नही होने देता था , सच बताऊ तो वार्षिक परीक्षा आते आते ,में उन सबसे बहुत ज्यादा
Knowledgeble हो गया था ।

खेर परीक्षा आ गयी और में अपनी पूरी तैयारी के साथ एग्जाम रूम में जाकर बैठ गया ,
अब जब तक एग्जाम पेपर हाथ मे न आ जाये तब तक शरीर मे एक बैचेनी सी रहती है ,
खेर मेरे हाथ मे एग्जाम पेपर आ ही गया पेपर देखते ही मेरा चेहरा खिल उठा क्योंकि जिन प्रश्नों की मेने तैयारी की थी वही प्रश्न एग्जाम में आये हुए थे ,
मेने वो झट से सारा पेपर डेढ़ घंटे में कर दिया और आराम से चुप चाप बैठ गया ,वैसे भी जिस छात्र के पास इंटर में पीसीएम जैसे भारी भरकम सब्जेक्ट हो उसके लिए ऐसा पेपर बहुत ही सरल था ,
में पेपर करने के बाद अपने आस पास के सभी स्टूडेंट पर नजर घुमाकर देख रहा था ,तभी मेरे बाये तरफ एक लड़की जो पूरी क्लास में खुद को सबसे ज्यादा इंटेलिजेंट मानती थी ओर कुछ हद तक वो होशियार थी भी।किन्ही कारणों से उस लड़की का नाम मैं यंहा सार्वजनिक नही कर सकता ।
उस लड़की ने मुझसे इसारे में दबी सी आवाज से पूछा तुमने सारा पेपर सॉल्व कर दिया , मेने भी गर्दन हिलाकर हा कर दी । तब उसने कहा plz कुछ क्युस्चन मुझे भी बता दो , तब फुस फूसि सी आवाज में मैने गर्दन नीची करते हुए उसे कई सवालों के उत्तर बता डाले अब आखिर टीचर तो टीचर होता है ,
तभी जो हमारे रूम की एग्जामिनर थी उसने मुझे आकर पकड़ लिया । और मेरी उत्तर पुस्तिका ले ली, मेरे कुछेक सवाल बाकी थे जिनका मुझे नही पता था , में सोच रहा था इन्हें बाद में तुक्के मार कर कुछ वैसे ही कर दूंगा जैसे तीन चार पार्टी मिलकर सरकार बनाती है या फिर क्रिकेट मैच के अंतिम ओवरों में जैसे जाहिर खान बेटिंग करते वक़्त आड़े तिरछे शॉट मार करके रन कूट भी लेता है और नही भी ।
बस में भी कुछ वैसी ही जुगत लगा कर उन सवालों को दागने वाला था, लेकिन तभी टीचर ने आकर मेरी उत्तर पुस्तिका ले ली और एग्जाम रूम से बाहर जाने को कहा, मेने मेडम से  rqst भी की । लेकिन कोई बात न बनी
तभी टीचर ने कहा अच्छा ये "बताओ तुम इस लड़की से उत्तर पूछ रहे थे या फिर इसको बता रहे थे ".? उसके बाद ही में तुम्हे तुम्हारी उत्तर पुस्तिका वापस दूंगी ।
अब मेने उस लड़की की तरफ देखा जो शर्म के मारे अपनी आंखों को झुकाये खुद में ही सिमट रही थी ।
बस पता नही मुझे क्या हुआ उस दिन मेने टीचर से पहली बार झूट बोला । मेने टीचर से कहा - कि मेम में ही उस लड़की से सवाल पूछ रहा था । उसके बाद तो मेम ने सीधा सीधा मुझे बाहर जाने को कहा , बोली कि तुम फिर इसे परेशान करोगे अब तुम्हे पेपर शीट नही मिलेगी । "गेट आउट "

सभी स्टूडेंट के सामने ये मेरा बहुत बड़ा अपमान था ।
खेर फिर भी मेरे चेहरे पर लेश मात्र भी निराश न थी ।
क्यों .? क्योंकि किसी के लिए किए गए त्याग और समर्पण का अपना एक अलग ही आनंद है ।
मन में एक गहरी शांति थी । और चित्त भी प्रश्न था ,
एग्जाम खत्म हुआ सब स्टूडेंट बाहर आ गए। में वही पास की दुकान पर खड़ा कोल्ड ड्रिंक पी रहा था , जैसे ही बस आई तो सब  स्टूडेंट बस में चढ़ गए लेकिन वो लड़की नही चढ़ी , जब अगली बस आई तो में उसमे चढ़कर बैठ गया झट से वो लड़की भी मेरे पास वाली सीट पर आकर बैठ गयी , तभी में अचानक से ठिठक गया क्योंकी गांव देहात में ऐसी स्थिति में बैठे लड़के और लड़की को लोग संवेदन सील दृष्टि से देखते है । में अपने को इस स्थिति में असहज महसूस कर ही रहा था कि तभी उस लड़की ने कहा ..थैंक्यू मोहित ।
ओर फिर प्रश्न किया कि तुमने एग्जामिनर से झूठ क्यों बोला?
बस मेने उसे इतना ही कहा - कि वैसे भी क्लास में ओर टीचर की दृष्टि में मेरा कोई विशेष सम्मान नही है में अपमानित हुआ कोई बात नही वैसे भी हम लड़को की इज्जत बेइजती कोई मायने नही रखती। लेकिन तुम पूरी क्लास में सबसे ज्यादा होशियार हो और तुम्हारी बहुत रेस्पेक्ट भी है । बस इसीकारण से मैने झूट बोल दिया ,
ताकि तुम्हारा सम्मान बना रहे ।
मेरा उत्तर सुनकर उस लड़की ने अपनी भीगी आंखों से कहा कि मुझे नही पता था ऐसे भी लड़के होते है जो लड़कियों की इतनी रेस्पेक्ट करते है ।
तुम्हें दिल से थैंक्यू मोहित ।

मेरा बस स्टैंड आ चुका था , में गाड़ी से उतरकर अपने रास्ते की ओर चल पड़ा , लेकिन गाडी के आंखों से ओझल होने तक वो लड़की मुझे देखती रही शायद उसकी बात अभी खत्म नही हुई थी...

-----------------कुंवर मोहित राणा


Wednesday 31 May 2017

एक चोर खुद चोरी करने के बाद लेने लगा लोगो की तलासी


कल में इंदौर उज्जैनी एक्सप्रेस ट्रेन में गाजियाबाद से मुज़फ्फरनगर जा रहा था ,
तभी एक ऐसा वाक्या मेरे सामने घटा जिसे देखकर में दंग रह गया , हुआ कुछ यु की मै ट्रेन की साधारण बोगी में सफ़र कर रहा था ,और औसतन सभी एक्सप्रेस ट्रेन की साधारण बोगियों में भीड़ अधिक रहती हे ।
बस मेरे उस डब्बे में भी भीड़ बहुत थी , सीट पर बैठने की तो बहुत दूर की बात खड़े होने में भी बहुत मुश्किल से जगह मिल पा रही थी , मै एक हाथ से ऊपर की सिट को पकड़े गर्दन झुकाये खड़ा था ,तभी मेरी नजर एक आदमी पर पड़ी,
चूँकि उसके अंदर एक बेचैनी सी थी उसकी विचित्र सी हरकते में तिरछी नजर गाढ़े हुए देखने लगा, उसके पहनावे को देखकर लग रहा था की वो ठीक ठाक परिवार से हे, दिखने में वो जेंटल इंसान एक रिबन का चश्मा अपनी वी सेफ बनियान पर आगे की और लटकाये हुए था , उस ट्रेन में सभी यात्री लगभग अपनी कशमकश में व्यस्त थे , तभी उस जेंटल इंसान ने एक ऐसे कार्य को अंजाम दिया जिसे देखकर में दंग रह गया ,
उस इंसान ने अपने पास में खड़े एक यात्री का फोन धीरे से चुरा लिया, और झट से स्विच ऑफ़ करते हुए उसे अपनी जीन्स की पेंट के अंदर ठूंस लिया , शायद अपने अंडर वियर में ।
में पहले नींद भरी आँखों से उसे देख रहा था , लेकिन जैसे ही उसने इस घटना को अंजाम दिया मेरी चेतना अचानक से सजग हो गयी , में बड़े ही विस्मयी मुद्रा से उसे देखने लगा उसकी इस हरकत को देखकर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था , खेर में कर भी क्या सकता था , क्योंकि जिस महापुरुष के साथ ये घटना घटी उन्हें अब तक इस बात का अनुमान तक न था , फिर मैने सोचा में ही उड़ता तीर क्यों लू ? जब उसे पता चलेगा तब की तब देखी जायेगी बस यही सोचकर में उसे सिर्फ देखता रहा ,
अभी 5 ही मिनिट हुई थी की जिसका फोन चोरी हुआ था उसने अपनी बाई जेब पर हाथ  रखा तो वो अचानक से चोंक पड़ा उसने तेजी के साथ अपनी दोनों जेब चेक की तो पाया फोन गायब हे, उसने जोर से हल्ला किया "भाईसाब मेरा फोन चोरी हो गया , इधर उधर देखता हुआ भौचक्का सा हो गया। डब्बे की सभी सवारी अगल बगल देखने लगी , तभी वो जेंटल इंसान जिसने फोन चुराया था , उस व्यक्ति के पास आया और बोला आप चिंता मत करो आपका फोन इसी डब्बे में हे , आप बस ये बताओ की लास्ट टाइम आपने फोन को कब अपनी जेब में रखा था , ट्रेन में चढ़ने से पहले या ट्रेन में चढ़ने के बाद ?
तब उसने कहा की भाई ट्रेन चलने के बाद तक फोन मेरे पास था लगभग 20 मिनिट भी नहीं हुई होंगी जब मेने फोन को अपनी जेब में रखा था ,
तब वो चोर बोला की बस तो चोर इसी ट्रेन में हे क्योंकि ये ट्रेन अब मेरठ ही रुकेगी , गाजियाबाद के बाद इसका पहला स्टेशन वही हे ।
चोर ने उसे कहा चलो हम दोनों मिलकर सबकी तलासी लेते हे ,
क्योंकि अभी तक ट्रेन का कोई भी स्टोपिज नहीं आया , चोर इसी में हे ,खेर आपका फोन कोनसा था .? चोर ने उससे पूछा तब उसने कहा भाई बीस हजार रूपये का सेमसंग का फोन था
चोर ने कहा ठीक हे चलो तलाशी लेते हे सबकी , जिसका फोन चोरी हुआ था उसने भी हां करते हुए तलासी लेनी शुरू कर दी ,
दोनों सवारियो की तलासी लेने लगे , एक एक  करते हुए तलाशी देने का नम्बर मेरा आ गया, (जो इस घटना को आरम्भ से देख रहा था )उस चोर ने मुझसे कहा भाईसाहब अपनी तलाशी दीजिये ,इसलिए थोडा सीधे खड़े हो जाये और अपना कमर से बेग भी उतारिये , मेने सीधे सीधे उसे मना कर दिया में तलाशी नहीं दूंगा , सब सावरिया अचानक से मुझे इस तरह घूरने लगी जैसे में ही चोर हु , जिसका फोन चोरी हुआ था वो भी अचानक से मेरी तरफ लपका ।
अब उस चोर ने बड़ा एटिट्यूड दिखाते हुए मुझे कहा तू अपनी तलाशी क्यों नहीं देगा बे .?

इतना सुनते ही मेने अपने दांये हाथ से एक तमाचा उस चोर की कनपटी पर रसीद कर दिया ,
उसने मुझपर हमला किया मेने दूसरे बांये हाथ से फिर एक और तमाचा उसकी कंसरि पर सूत दिया ,
जिसका फोन चोरी हुआ था वो भी बड़े गुस्से के साथ मुझ पर टूट पड़ा तब मेने कहा सुन भाई तेरा फोन अभी देता हु , मुझे गलत मत समझ ।
वो एकाएक रुक गया , अब मेने उस चोर का गिरेबान पकड़ा और कहा चल इसका फोन दे , ये सुनते ही सभी यात्री चोंक पड़े , और वो चोर बोला भाईसाहब मेरे पास फोन नहीं हे।
खेर दो तमाचों का असर इतना तो हुआ की वो बे से भाईसाहब पर आ गया , मेने उसे फिर कहा यही देगा या पोलिस स्टेशन में जाकर ? तब उसने अपनी गर्दन को झुकाते हुए अपनी पेंट के अंदर से फोन निकाला और बोला plz भाईसाब मुझे पोलिस में मत देना ये मेरी बहुत बड़ी  गलती थी मुझे खुद महसूस हो रही हे माफ़ कर दो plz वो बुरी तरह गिड़गिड़ाने लगा ,
ये सब देखकर लगभग सभी सवारी उस चोर के खेल को समझ चुके थे ।सभी सवारियो ने कहा नहीं ...इसे पोलिस को दे दो ,
जिसका फोन चुराया था वो भी पुरे गुस्से में उसपर आगबबूला हो रहा था ,उसने उसे कहा तुझ जैसे चोरो की जगह जेल ही हे में अभी पोलिस को फोन करता हु सब कहने लगे हा करो करो ....
पता नहीं क्यों ये मुझे अच्छा नहीं लगा मेने उसका फोन पकड़ते हुए कहा जाने दो ,तुम्हारा फोन मिल गया यही बहुत बड़ी बात हे बाकी इसके कर्म इसके साथ तुम मुझे धन्यवाद देना चाहते हो तो इसे छोड़ दो , (मै अपनी ब्लैक कलर की राजपुताना ब्रेण्ड वाली हूडी पहने हुए था जिस पार आगे *जय राजपुताना* और पीछे #क्षत्रिय लिखा था ।)

तब उसने मुझसे कहा "ठीक हे ठाकुर साहब आपके कहने पर इसे छोड़ दिया मेने"।

अब मेने उस चोर को कहा कि तुम्हारी उम्र तीस पैंतीस साल की होगी तुम्हे शर्म आनी चाहिए ऐसा घिनोना काम करते हुए ।

उसने सिर्फ इतना कहा थैंक्यू छोटे भाई ।
मेरठ स्टेशन आ गया था ट्रेन धीमी ही हुई थी की वो उतर गया ।

सबने मुझे बहुत सराहा और कहा बहुत बढ़िया ठाकुर साहब सच में मुझे कल बहुत गुड़ फील हुआ ,

लेकिन एक बात खटकती रही कि मेने उस चोर को यू ही छोड़ दिया, ये गलत किया या सही ..??

---------------------------कुँवर मोहित राणा


आख़िर ज़ीवन है क्या ?

 एक लंबे समय बाद आज कुछ लिखने का मन है मुझे नहीं पता था की आज भी कुछ लोग मेरी विचारधारा को उतना ही पसंद करते है जितना पहले पसंद किया करते थे...